गिरिडीह का रण : : जयराम महतो के सियासी करियर का पहला इम्तिहान, आजसू और JMM को डर !

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Battle of Giridih: First test of Jairam Mahato's political career, AJSU and JMM fear! Battle of Giridih: First test of Jairam Mahato's political career, AJSU and JMM fear!

गिरिडीह लोकसभा चुनाव की इस दहलीज़ में इंडिया और एनडीए की टक्कर में युवा जयराम अपनी अलग चमक बिखेरे हुए है. जिनसे डर तो आजसू और जेएमएम दोनों को है. भाषा आंदोलन के जरिए अचानक सियासी दुनिया में पैर रखने वाले जयराम महतो ने जता दिया की यहां का आम आवाम की, एक उम्मीद और खेवनहार है. उनसे ख्वाहिशे जनता को भरपूर है.

गिरिडीह लोकसभा में दिग्गजों और तज़ुर्बेकार नेताओं की फेहरिश्त में जयराम, बेशक खुद को अकेला और अनजान महसूस करते हो . लेकिन राजनीति के इस अगर-मगर वाली डगर में अनुभव बटोर रहें है, और उस सियासत को समझ रहें है. जो आगे एक सिद्धहस्त सियासतदान बनने में मददगार होगा. गिरिडीह के इस दंगल में उनके सियासी करियर का पहला इम्तिहान है. अगर जीत गए तो भी ठीक और हार गए तो भी कोई परवाह नहीं है. यहां उनके लिए खोने के लिए कुछ भी नहीं है, बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव के लिए उनकी जमीन ही तैयार होगी.

आदिवासी -मूलवासी और 1932 की खतियान की राजनीति करने वाले जयराम के वोटर्स भी, वही है. जो झारखण्ड मुक्ति मोर्चा एवं आजसू के है. लाजमी है ऐसे में जेएमएम एवं आजसू का ही वोट बिखराव होगा और फायदा जयराम को होगा. ऐसी सूरत में जयराम के लिए आगे की राह आसन ही बनेगी. गिरिडीह के छह विधानसभा को अगर देखें तो बेरमो, गोमिया, डुमरी, गिरिडीह, बाघमारा और टुंडी आते है. जहां जयराम का वोटबैंक में साफ दिखता है.दूसरा पहलू ये भी है कि, जिस तरह की भीड़ जयराम महतो की सभा में उमड़ रही है. वो भी बिना लाग -लपेट और ताम- झाम के यह उनकी लोकप्रियता और लोगों की उनसे उम्मीदें ही दर्शाता है.

यहां सवाल ये है कि अचानक जयराम कैसे सियासी बिसात में सिकंदर बन गए?.

आखिर, उन्होंने क्या कर दिया की. आज उनका नाम सर आँखों पर है?.

अगर इसका जवाब ढूंढे तो, बिल्कुल सीधा सा उत्तर यही निकलता है. वह, यह है कि, जिस झारखण्ड के बने दो दशक से ज्यादा वक़्त हो गए और जिन नेताओं को यहां का आवाम ने चुना. उनलोगों ने ही यहां के लोगों के सपनों पर पानी फेरा. उन अरमानों का गला घोंटा और अलग राज्य बनने के बाद भी उनकी ख्वाहिशे बेजार हो गई. आलम आज ये है कि झारखण्ड के मूलवासी -आदिवासी की सियासत करने वाले दल सिर्फ वोट बैंक की राजनीति की. विकास की बात और रोजी -रोजगार की बात महज जुबान और कागजों में ही सिमट कर रह गई. आज आम झारखंडी, इन नेताओं के बड़बोलेपन और कोरे वायदों के चलते ठगा हुआ महसूस करता है.

ऐसी निराशा वाली हालात में ही जयराम जैसा नेता निकलते है. उसकी सफगोई भरी बातों से जनता बरबस खींची चली आती है . जिसमे लोगों का अपना एक भविष्य और उम्मीद दिखलाई पड़ती है. जयराम का एकाएक सियासी फलक में छाने की यही वजह है. आगे जयराम कितना कामयाब होते है, ये तो समय तय करेगा. लेकिन, जो मौजूदा हालात है, उससे तो साफ है की कोई भी दल और नेता उन्हें दरकिनार करने की गलती या हिमाकत नहीं करेगा. गिरिडीह लोकासभा सीट से जयराम लड़ते है या नहीं ये भी देखना दिलचस्प होगा?. एक बात तो साफ है कि जयराम के लिए अभी उड़ने के लिए पूरा आसमान बाकी है, अभी तो सियासत की इस दुनिया में, उन्होंने कदम ही रखा है.

बेरमो से पंकज सिंह की रिपोर्ट..


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